जन सुराज एक ऐसी मुहिम, जो बिहार को बदलने का ऐसा प्रयास है जो आजतक पहले कभी नहीं किया गया | आजादी के बाद से जितनी भी सरकारें आईं या तो उन्हें चुपचाप सरकार चलाने से मतलब थी या बस सत्ता कायम रहे बस, बिहार जहां जाता रहे जाय, उन्हें क्या मतलब | फिर एक सरकार आई जिसे सत्ता से कुछ ऊपर ही चाहिए था तभी तो जंगलराज जैसा समय भी बिहार ने देखा, जब दिनदहाड़े कुछ भी या सबकुछ हो सकता था | कानून तो बस किताबों में ही थी, सिर्फ जिक्र करने के लिए | फिर एक सरकार आई अफसर राज वाली सरकार इसमें अफसरों में इतना जोर था कि आम आदमी तो दूर मंत्री जी से भी काम के बदले डिमांड होने लगी | हां, इस दौर में कुछ काम ज़रूर हुए इसे नकारा नहीं जा सकता, जैसे – स्कूल निर्माण, सड़क निर्माण, हॉस्पिटल निर्माण | पर व्यवस्था ऐसी कि सवाल वही रहा कि स्कूल अच्छी होने से पढाई में गुणवत्ता आई ?, अस्पताल तो बड़े बन गए पर उसमे अच्छी व्यवस्था है, सही से इलाज हो रहा है ?
आज की जो सबसे गंभीर समस्या है वो है रोजगार | आजादी के बाद से इतनी सरकारें आईं लेकिन बिहार की समस्या जस की तस बनी रही या यूं कहिये की बढ़ी ही है | पहले भी लोगों को रोजगार के लिए बाहर निकलना पड़ता था, आज भी निकलना पड़ता है, आज तो ज्यादा संख्या में लोग बाहर निकल रहे हैं | अभी तो ऐसी समस्या हो गई है कि आप गरीब हैं या अमीर, आपको निकलना ही पड़ेगा बिहार से, गरीब हैं तो कमाने निकलिएगा, अमीर हैं तो पढ़ने निकलिएगा और जब पढ़ लेंगे तो फिर आपके लायक बिहार में काम नहीं मिलेगा तो फिर कमाने भी निकलिएगा, मतलब मिला जुलाकर आप बाहर ही जाने वाले हैं | बाहर रहने का दर्द उस इंसान से पूछिए जो एक दिन भी अपने घर से दूर नहीं रहना चाहता फिर भी उसे किसी दूसरे राज्य में अपने परिवार अपने समाज से दूर मजबूरन रहना पड़ता है, जिसे कभी छुट्टी न मिल पाने की वजह, से कभी टिकट न मिलने की वजह से, छठ पूजा में घर जाने का मौका नहीं मिल पाता है और जो घर पहुंच भी गए तो पूजा खतम होने से पहले अपना सामान बांध कर अपने माँ-बाप, पत्नी, बच्चे को छोड़कर, न चाहते हुए भी फिर से लौटना पड़ता है |
ऐसे में जन सुराज बिहार वासियों के लिए आशा की एक किरण बन कर आया है | इसके संस्थापक प्रशांत किशोर एक राजनितिक विश्लेषक हैं, राजनितिक पार्टियों को चुनाव जीतने में मदद करना, उनका मुख्य पेशा था | वे जिस पार्टी के सहयोगी रहे, उन्हें चुनाव में जीत ही हासिल हुई | उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ में काम करने का भी अनुभव है, पर अब उन्होंने अपना पेशा छोड़कर, बिहार में एक राजनैतिक व्यवस्था बनाने का फैसला किया है | वे बिहार में एक ऐसी व्यवस्था बनाना चाहते हैं जहां नेताओं का नहीं, जनता का राज हो | समाज के हर वर्ग, हर तबके से अच्छे लोग चुनकर आएं और वे अपने और अपने परिवार के स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि बिहार के हित में कार्य करें |
प्रशांत किशोर बिहार में राजनीति करने नहीं बिहार के उत्थान के लिए आए हैं | उन्होंने घोषणा की है कि वे खुद कोई पद नहीं लेंगे, उन्हें मुख्यमंत्री बनने की भी कोई चाहत नहीं है | वे बिहार को भारत का अग्रणी राज्य बनाना चाहते हैं उनका सपना है कि वो अपने जीवन काल में बिहार को एक ऐसा राज्य बनाना चाहते हैं जहां महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा से लोग आकर बिहार में नौकरी करें | लोग बिहार में नौकरी पाने का सपना देखें, ये सपना सिर्फ प्रशांत किशोर जी का नहीं है, कहीं न कहीं हर बिहारी के दिल में ये चाहत है कि हमारा बिहार रोजगार के मामले में, समृद्धि के मामले में, सम्पन्नता के मामले में, पूरे भारत में नंबर 1 बने | ताकि बिहार के किसी बच्चे को न पढ़ाई करने, न ही नौकरी करने बाहर जाना पड़े | पढ़ाई की, रोजगार की, इलाज की, सारी व्यवस्था यहीं बिहार में हो |
यह पूरे बिहार के लिए गौरव की बात है कि जो सपना हम आज तक देखते आए हैं उसे पूरा करने के लिए आज कोई बिहार का लाल खड़ा हुआ है वह पूरी तरह इसे कर पाने में सक्षम है, वह काबिल है, उसे संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे मंच पर काम करने का अनुभव है | प्रशांत किशोर जी के पास एक विज़न है एक नज़रिया है एक रोडमैप है उनके केंद्र बिंदु में रोजगार है जो आज बिहार की सबसे बड़ी समस्या है | लगभग हर घर का एक आदमी आज दूसरे राज्य में काम कर रहा है | गांव की हालत तो और भी ख़राब है बिहार का लगभग हर गांव युवाओं से खाली है, अमीर बाप के बच्चे पढ़ने निकल गए हैं और गरीब के बच्चे रोजगार के लिए निकले हुए हैं |
जन सुराज आज लोगों को जगाने के लिए पूरे बिहार में पद यात्रा कर रहा है | जहां लोग आज तक जाति के नाम पर, धर्म के नाम पर, वोट करते थे, अपना नेता चुनते थे, वहीं जन सुराज ने उन्हें जाति, धर्म, नेता को देख कर नहीं बल्कि अपना बेटा को देखकर वोट देने की अपील कर रहा है | हर इंसान चाहे कोई भी कितना भी अपने जाती धर्म या नेता से लगाव रखता हो लेकिन जब बात बेटे की आएगी तो वो समझौता नहीं करेगा वो उसी को चुनेगा जो उसके बच्चों के भविष्य के हित में हो |
जन सुराज आज बहुत हद तक इस बात को समझाने में सफल भी रहा है | जिस तरह का सैलाब आज जन सुराज की रैलियों में दिख रही है इससे तो यही पता लगता है कि जन सुराज अपने उद्देश्य में सफल हो रहा है, तभी तो आज बिहार की राजनीती में गर्माहट पैदा हो गई है | कुछ लोग जो अपनी पुश्तैनी राजनितिक विरासत का मजा ले रहे हैं वो उन्हें बीजेपी का बी टीम कह रहे हैं, उनका कहना है कि बिहार एक पोलिटिकल स्टेट है यहां किसी का नहीं चलने वाला है | काश ! उनका कहना सही होता, काश ! बिहार एक पोलिटिकल स्टेट होता, तो बिहार की आज ये हालत नहीं होती, बिहार भी देश के अग्रणी राज्यों में होता !
असल में ये बयान उनकी बेचैनी बयां कर रही है | उन्हें अपनी कुर्सी खतरे में दिखाई दे रही है | उन नेताओं को प्रशांत किशोर पर टिप्पणी की जगह, खुद से ये सवाल करने चाहिए कि आप अगर इतने ही योग्य हैं तो आज बिहार इस हालत में क्यों है ?, क्यों लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में भटक रहे हैं ?, क्यों बिहार भारत का सबसे पिछड़ा, सबसे गरीब राज्य बना हुआ है ?
उन्हें तो प्रशांत किशोर को प्रोत्साहित करना चाहिए, कि जिस काम में वे लोग असफल रहे, उस काम का जिम्मा उन्होंने उठाया है |
आज हर बिहारी को जन सुराज के पदयात्रा अभियान में हिस्सा लेकर अपने बिहार को मजबूत और समृद्ध बनाने की राह में अपना योगदान देना चाहिए |
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